पाठ – 1
ईटें, मनके और अस्थियाँ ( Bricks Beads and Bones ) (हड़प्पा सभ्यता)
In this post, notes of 12th Class History Lesson – 1 Bricks Beads and Bones are given. These notes are useful for all the students studying in 12th class.
इस पोस्ट में 12th Class के History के पाठ – 1 ईटें मनके और अस्थियाँ (bricks beads and bones) के नोट्स दिए गए हैं। ये नोट्स 12th Class में पढ़ रहे सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हैं।
सभ्यता किसे कहते हैं?
सभ्यता एक ऐसे समाज को कहा जाता है जिसने एक लेखन प्रणाली, सरकार, श्रम विभाजन और शहरीकरण विकसित किया है।
विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताएं
हड़प्पा सभ्यता की खोज से पहले ये माना जाता था की मेसोपोटामिया की सभ्यता, चीन की सभ्यता और मिस्र की सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताएं हैं। लेकिन 1921 में हड़प्पा सभ्यता की खोज के बाद से यह विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता बन चुकी है।
हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई ?
- सन 1865 के दौरान पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान में) में रेलवे लाइन बिछाने के लिए उत्खनन का कार्य चल रहा था। उत्खनन के दौरान कुछ लोगों को इस स्थान पर ईटों की बनी दीवारें मिली लेकिन इन्हे खंडहर मानकर नजरंदाज कर दिया गया और प्राप्त हुई ईटों को रेलवे कार्य में इस्तेमाल कर लिया गया पटरी बिछाने का कार्य जारी रखा गया।
- सन 1861 में भारतयी पुरातत्व विभाग की स्थापना हुई। एलेक्सेंडर कनिघम इसके पहले डायरेक्टर जनरल थे।
- इसके दूसरे डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल थे जिनके नेतृत्व में हड़प्पा की खोज हुई।
- हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921 में दयाराम साहनी के द्वारा हुई।
- हड़प्पा सभ्यता को कई नामों से जाना जाता है :-
- हड़प्पा सभ्यता :
- हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है क्यूंकि इस सभ्यता के सबसे पहले अवशेस हड़प्पा नाम की जगह पर मिले थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता :
- सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है क्यूंकि यह सभ्यता सिंधु नदी के पास पाई गयी है।
- काँस्य युग सभ्यता :-
- काँस्य युग सभ्यता कहा क्यूंकि इस सभ्यता में ताम्बा और टिन मिलाकर कांसे की खोज हुई थी।
- हड़प्पा सभ्यता :
- हड़प्पा सभ्यता से पहले भी इस क्षेत्र में कई विकसित संस्कृतियां अस्तित्व में थीं।
- इन संस्कृतिओं का इतिहास bricks beads and bones की जाँच करके पता लगाया जाता है
- ये संस्कृतियां अपनी मृदभांड सैली के लिए जानी जाती थीं।
- इसमें कृषि, पशुपालन और शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं।
- आरम्भिक हड़प्पा में बस्तियां आम तौर पर छोटी हुआ करती थीं। इसमें बड़े आकार की बस्तियां न के बराबर थीं।
- बड़े पैमाने पर इलाकों के जलाये जाने के साक्ष्य मिलते हैं। और कुछ स्थानों के त्याग दिए जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि आरम्भिक हड़प्पा और हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रमभंग था।
निर्वाह के तरीके
- विकसित हड़प्पा संस्कृति का आरंभिक हड़प्पा संस्कृति के स्थान पर पनपना।
- हड़प्पा के निवासि अपना पेड़-पौधों, जानवरों व मछलियों को खाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे।
- हड़प्पा सभ्यता में जले अनाज के दाने और बीज भी मिले हैं।
- अनाज के दानों में गेहूं , जौ , दाल , सफ़ेद चना तथा तिल शामिल हैं।
- बाजरे के दाने गुजरात से मिले हैं। चावल के दाने अपेक्षाकृत काम पाए गए हैं।
- हड़प्पा से जानवरो की हड्डियां भी मिली हैं जिनमे – मवेशियों समेत भेंड़, बकरी, भैंस और सूअर की हड्डिया शामिल हैं।
- ऐसा भी अनुमान लगाया गया है की ये सभी जानवर पालतू हुआ करते थे।
- इन हड्डियों में जंगली जानवरो जैसे – वराह(जंगली सूअर), हिरन और घड़ियाल की हड्डिया भी शामिल हैं।
हड़प्पा सभ्यता की कृषि प्रौद्योगिकी
- हड्डपाई लोगों को वृषभ(बैल) की जानकारी थी। यहां से कृषि के साक्ष्य भी मिले हैं।
- चोलिस्तान और बनावली(हरियाणा) से मिटटी के बने हल भी प्राप्त हुए हैं।
- कालीबंगन(रजिस्ठान) से जुते हुए खेतों के संकेत मिले हैं।
- खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक -दूसरे को समकोण काटते हुए मिले हैं। जिससे मालूम होता है दो अलग फसलों को एक साथ उगाया जाता था।
- अफगानिस्तान में शोर्तुघई नाम के स्थान से नहरों के अवशेस मिले हैं। जिससे खेतों की जुताई की जाती होगी।
- एक अनुमान यह भी है की खेतो की जुताई कुओं से भी की जाती होगी।
- धौलावीरा (गुजरात) में जलाशयों का प्रयोग कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था।
मोहनजोदड़ो का इतिहास
-हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा शहरी केंद्र मोहनजोदड़ो है। मोहनजोदड़ो की खोज रखाल दास बनर्जी के द्वारा 1922 में की गई।
- बस्तियां दो भागों में बंटी थी “निचला शहर” और ऊंचाई पर बना शहर (दुर्ग) .
- दुर्ग की उचाई का कारण इसका कच्ची ईटों के चबूत्तरे पर बना होना है।
- दुर्ग को चारो ओर से दीवारों से घेरा गया है ताकि इसे निचले शहर से अलग किया जा सके।
- निचले शहर को भी दीवारों से घेरा गया है और इसमें भी कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया है।
- मोहनजोदड़ो की बनावट से ऐसा लगता है की इसमें बस्तियों के निर्माण से पहले इनका नियोजन किया गया होगा।
- घरो को बनाने में ईटों का उपयोग किया गया है। अनुमान यह भी है की इन ईटों का इस्तेमाल इन्हे धूप में सुखाने के बाद किया जाता था।
- निर्माण में समान अनुपात की ईटों का इस्तेमाल किया जाता था। जहाँ लबाई और चौड़ाई की क्रमशः चार गुनी और दोगुनी होती थी।
हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली : –
- हड़प्पा की सबसे अनूठी विशेसता इसकी जल निकास प्रणाली है ।
- हड़प्पा सभ्यता में सड़कों और गलियों को ग्रिड पद्धिति के अनुसार बनाया गया है। ये सड़कें व नालियां एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
- हड़प्पा में सबसे पहले सड़को व नालियों का निर्माण किया जाता था इसके बाद इनके इर्द गिर्द घरों का निर्माण किया जाता था।
ग्रह स्थापत्ये (हड़प्पा सभ्यता के घर कैसे बनाये जाते थे?
- मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- इसमें भवनों का निर्माण आँगन को केंद्र में रखकर किया जाता था।
- आँगन का उपयोग – खाना पकाने, कटाई करने जैसे कार्यों को करने के लिए किया जाता था।
- गर्म और शुष्क मौसम में एकान्तता को अधिक महत्व दिया जाता था।
- गोपनीयता बनाये रखने के लिए भू-तल पर बने घर के हिस्से में खिड़कियां नहीं लगाई जाती थी।
- प्रत्येक घर में एक स्नान घर होता था जिसकी नाली दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुडी होती थी।
- कुछ घरों में सीडिया भी पाई गई हैं।
- और घरों में कुएँ भी पाए गए हैं।
- मोहनजोदड़ो में कुल कुओं की संख्या 700 नापी गई है।
दुर्ग
मोहनजोदड़ो का मालगोदाम :-
यह एक विशाल संरचना जिसका निचला हिस्सा ईटों का बना हुआ है। जबकि इसके ऊपरी हिस्से के बारे में अनुमान लगाया गया है की वह लकड़ियों का रहा होगा लेकिन वो बोहुत समय पहले ही नष्ट हो गया होगा।
मोहनजोदड़ो का स्नानागार :-
यह एक आयताकार जलाशय है जो की आँगन में बना है। जलाशय के उत्तरी और दक्षिणी भाग में सीढ़ियां हैं जो की इसके तल तक पहुँचती हैं।
- जलाशय को जिप्सम के गारे से जलबद्ध किया गया है।
- इसके तीनो ओर कक्ष बने हुए हैं।
- जलाशय का पानी बड़े नाले के द्वारा बाहर निकाला जाता था।
सामाजिक भिन्नताओं का अवलोकन
हड़प्पा सभ्यता में शवाधान :-
- हड़प्पा में ज्यादातर शव जमीन में दफन मिले हैं। अर्थात हड़प्पा सभ्यता में शवों को जमीन में दफन किया जाता था।
- कुछ कब्रों की सतह तो ईटों से चुनी हुई भी मिली हैं।
- कुछ कब्रों में मृदभांड और आभूषण भी पाए गए हैं।
- पुरुषो और महिलाओं दोनों की कब्रों से मृदभांड व आभूषण मिले है।
- कहीं कहीं पर शव के साथ ताम्बे का दर्पण भी पाए गए हैं।
‘विलासिता’ की वस्तुओ की खोज
- विलासिता की वस्तुओं को पहचानने के लिए एक पद्धिति का उपयोग किया जाता है जिसमे चीजों को अलग अलग वर्गों में बांटा जाता है
- पहला वर्ग :- इसमें रोज़ मर्रा की वस्तुओं जैसे पत्थर व मिटटी से बानी बस्तुओं को रखा जाता है।
- दूसरा वर्ग :- इसमें दुर्लभ व महंगी चीजों को रखा जाता है जैसे – फायंश (घिसी हुई रेत या बालू और रंग को चिपचिपे पदार्थ में मिलाकर आग में पका कर बनाई गई वस्तु)
- छोटे पत्रों को संभवतः कीमती माना जाता था क्यूंकि इन्हे बनाना कठिन था।
- जयादातर दुर्लभ वस्तुए मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे शहरों में पाई गई हैं।
- कालीबंगन जैसे छोटे में महंगी व दुर्लभ वस्तुये न के बराबर पाई गई हैं।
शिल्प-उत्पादन के विषय में जानकारी
- शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण अदि शामिल हैं।
- हड़प्पा सभ्यता में कार्निलियन(सूंदर लाल रंग का पत्थर), जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज़ और सेलखड़ी जैसे शिल्प के लिए उपयोगी पत्थर पाए गए हैं।
- यहां पर ताम्बा, काँसा और सोने जैसी धातुएं भी पाई गई हैं।
- शंक, फयांस और पकी मिटटी का प्रयोग मनके बनाने के लिए किया जाता था।
- कुछ मनके दो या दो से ज्यादा पत्थरों को जोड़कर बनाये गए प्रतीत होते हैं।
- कुछ पत्थर सोने के टोप वाले होते थे और इन्हे कई आकारों – बेलनाकार, चक्राकार आदि में बनाया जाता था।
- सेलखड़ी मुलायम पत्थर होने के कारण इसका चूर्ण बनाकर और सांचों में डालकर इससे मनके बनाये जाते। ये मनके बाक़िओं की अपेक्षा आसानी से बन जाते थे।
- कार्निलियन जो कि एक लाल रंग का पत्थर है इसे पीले रंग के कच्चे माल से विभिन्न चरणों से गुजरने के बाद आग में पका कर मनाया जाता था इसे भी मनके बनाने में इस्तेमाल किया जाता था.
उत्पादन केंद्रों की पहचान
पुरातत्वविद उत्पादन केंद्रों की पहचान निम्न चीजों के आधार पर करते हैं :
- प्रस्तर पिंड, पुरे संख तथा ताम्बा अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएँ, त्याग दिया गया माल और कूड़ा – कर्कट।
- कूड़े – कर्कट को उत्पादन केंद्र की पहचान करने के लिए सबसे अच्छा साधन माना जाता है।
- छोटे विशिस्ट केंद्रों के अतिरिक्त मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े शहरों में भी शिल्प उत्पादन कार्य किया जाता था
माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियां
- पत्थर, लकड़ी और धातु जलोढ़ मैदान से बाहर के क्षेत्र से मंगाए जाते थे।
- बैलगाड़ी के मिटटी से बने खिलौने के संकेत का मिलना।
- इससे यह जानकारी मिलती है की परिवहन के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग किया जाता था।
- एक अनुमान यह भी है की सिंध और इसकी उपनदियों के माध्यम से भी सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता होगा
उपमहाद्वीप तथा उसके आगे से आने वाला माल
- नागेश्वर और बालाकोट (जो की समुद्र तट के नजदी बसे शहर) में शंख आसानी से मौजूद थे। जिस कारण यहाँ पर वस्तियों का निर्माण हुआ होगा।
- अफगानिस्तान के शोर्तुघई से नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि मगाये जाते थे।
- लोथल(गुजरात में भड़ौच) से कार्निलियन, सेलखड़ी(दक्षिणी राजिस्थान तथा उत्तरी गुजरात से ), और धातु (राजिस्थान से) आते थे।
- इसके इलावा राजस्थान के खेतड़ी अंचल(ताम्बे के लिए) और दक्षिण भारत(सोने के लिए) जैसे क्षेत्रों में अभियान भी भेजे जाते थे।
सुदूर क्षेत्रों से सम्बन्ध
- हाल ही की कुछ नई खोजों से यह जानकारी सामने निकलकर आई है की राजस्थान के खेतड़ी अंचल के इलावा ओमान से भी ताम्बा मगाया जाता था।
- ओमनी ताम्बे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं , दोनों में निकल के अंश मिले हैं। जो दोनों के साझा उद्भव की ओर इसारा करते हैं।
- हड़प्पाई मर्तबान जिसके ऊपर काली मिटटी की एक मोटी परत चढाई गई थी, ठीक ऐसे ही मर्तबान ओमान से भी मिले हैं।
- इस मर्तबान का उपयोग तरल पदार्थों को रखने के लिए किया जाता था।
- मेसोपोटामिया के ताम्बे में भी निकल के अंश मिलना जिससे यह मालूम होता है की मेसोपोटामिया और हड़प्पा में व्यापार चलता था।
- लम्बी दुरी से व्यापर की पहचान हड़प्पाई मुहर, बाट, पासे तथा मनके से की जाती थी।
- मेसोपोटामियां के लेख दिलमुन(बहरीन द्वीप) में मगान तथा मेलुहा से संपर्क की बात कही गई है संभवतः ये नाम हड़प्पाई क्षेत्रों की ओर इशारा करते हैं।
- मेलुहा को नाविकों का देश भी कहा गया है।
मुहरें, लिपि तथा बाट
मुहरे और मुद्रांकन
- मुहरों और मुद्राओं का प्रयोग लम्बी दूरी के संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता था।
एक रहस्यमई लिपि
- हड़प्पाई लिपि निम्न कारणों से आज तक रहस्यमई बानी हुई है :
- हड़प्पाई लिपि का चित्रात्मक होना।
- अभी तक के सबसे लम्बे प्राप्त हुए लेख में 26 चिन्ह हैं।
- लिपि का आज तक न पढ़ा जाना।
- लिपि का वर्णमालिये होना।
- लिपि में चिन्हो की संख्या संख्या का 375-400 के बीच होना।
- लिपि का दाईं ओर से बाईं ओर लिखा जाना।
बाट
- लेन देन बाटों की प्रणाली के द्वारा किया जाता था।
- बाट चर्ट नाम के पत्थर से बनाये जाते थे।
- ये आयताकार होते थे और इन पर किसी भी प्रकार का चिन्ह या निशान नहीं होता था।
- छोटे बाटो का इस्तेमाल संभवतः मनके व आभूषण तौलने के काम आते थे।
- हड़प्पा सभ्यता में धातु से बने तराजू के पलड़े भी पाए गए हैं।
प्राचीन सत्ता
- हड़प्पाई सभ्यता में असाधारण एक रूपता मिली है।
- जैसे मृदभांड , मुहरों, बाटो तथा ईंटो आदि सभी स्थानों से सामान पाए गए हैं।
- हड़प्पा सभ्यता में ईंटों का उपयोग एक सामान किया गया है (जम्मू से गुजरात) .
- आवस्यकता के अनुसार वस्तियों को अलग अलग स्थानों पर स्थापित किया गया था।
प्रासाद और शासक
- हड़प्पा सभ्यता में सत्ता धारी लोगों के बारे पुरातत्विदों को कोई खास जानकारी नहीं मिली है।
- मोहनजोदड़ो में एक विशाल भवन पाया गया है से प्रासाद नाम दिया गया है।
- एक पत्थर की मूर्ति को “पुरोहित राजा” की संज्ञा दी गई है।
- हड़प्पा की अनुष्ठान पद्धिति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिली है।
- कुछ पुरातत्वविदो का मानना है की हड़प्पा सभ्यता में कोई राजा नहीं रहा होगा सभी लोग एक सामान रहे होंगे।
- एक अनुमान यह भी की हड़प्पा में कोई एक नहीं बल्कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि के लिए अलग अलग कई राजा रहे होंगे।
- एक और अनुमान यह भी है की इस पूरी सभ्यता का एक ही राजा रहा होगा लेकिन इस अनुमान पर विश्वास करना जरा मुश्किल है क्यूंकि इतने बड़े साम्राज्य पर राज करना एक राजा के लिए बहुत मुश्किल कार्य है।
सभ्यता का अंत
- लगभग 1800 ईशा पूर्व तक चोलिस्तान क्षेत्र से अधिकतर बस्तियों को त्याग दिया गया था।
- इसी के साथ ही गुजरात , हरियाणा पश्चिम उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में बस्तियां बढ़ने लगी थी।
- ऐसा माना जाता है की उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ईसा पूर्व के बाद भी अस्तित्व में थे।
- इस कालांतर में कुछ स्थानों में भौतिक परिवर्तन भी हुए जैसे – बाटों, मुहरों, मानकों का समाप्त हो जाना।
- लेखन, लम्बी दुरी का व्यापार और शिल्प विशेषताओं का समाप्त होना।
- आवास निर्माण कला का हाश हो गया और और संस्कृति ग्रामीण होती गयी
- इस संस्कृति को ”उत्तर हड़प्पा” या ”अनुवर्ती संस्कृतियों” के नाम से जाना जाता है।
कनिंघम का भ्रम
- भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से पुरातात्विक उत्खनन शुरू किये।
- प्रारंभिक बस्तिओं की पहचान के लिए कनिंघम ने 7वी सताब्दी में चीनी यात्रिओ के छोड़े गए वृतांतों का सहारा लिया।
- लेकिन चीनी वृतांतों के सर्वेक्षण करने पर भी कनिंघम को इस सभ्यता का कोई प्रमाण नहीं मिला।
- कनिंघम को यह भ्रम था की यह सभ्यता लगभग 400-700 ईसा पूर्व पुरानी हो उन्हें ये अंदाजा बिकुल नहीं था हड़प्पा सभ्यता लगभग 2600 ईसा पूर्व पुरानी भी हो सकत है।
अंत में
इतिहास के इस पाठ – ईटें मनके और अस्थियाँ ( bricks beads and bones ) में हमें विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता ( हड़प्पा सभ्यता ) के बारे में कई प्रकार की जानकारियां मिलती हैं। पाठ से हमें हड़प्पा के निवासियों की जानकारी मिलती है वे कैसे रहते होंगे किस प्रकार का भोजन करते होंगे या फिर उनके व्यापर संबधी कई जानकारियां हमें इस पाठ “ईटें मनके और अस्थियाँ ( bricks beads and bones )” में मिलती है।