कक्षा 12 इतिहास – अध्याय 2
राजा, किसान और नगर – आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएं
यह अध्याय लगभग 600 ईसा पूर्व से 600 ईस्वी तक के कालखंड (Period) को कवर करता है। इस कालखंड के दौरान महाजनपदों का उदय, मौर्य साम्राज्य का विकास, नए नगरों का बनाना(emergence), और कृषि एवं व्यापार जैसे बदलाव देखने को मिलते हैं।
1. महाजनपद (लगभग 600 ईसा पूर्व – 345 ईसा पूर्व)
- अर्थ: ‘महाजनपद’ का आसान भाषा मे अर्थ है ‘बड़ा राज्य‘ (Great Kingdom)।
- उदय के कारण: अब जानते हैं महाजनपद कैसे बने-
- लोहे का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल: लोहे के हल (Ploughshare) और कुल्हाड़ी (Axe) के इस्तेमाल से जंगल साफ करके कृषि योग्य भूमि का विस्तार हुआ।
- कृषि में वृद्धि: खेती की उत्पादकता बढ़ी, जिससे अतिरेक (Surplus, ज्यादा पैदावार हुई) पैदा हुआ। इस अतिरेक से सेना, प्रशासन और शिल्पकारों को समर्थन मिला।
- सामाजिक विषमता: बढ़ती हुई पैदावार के साथ-साथ समाज में संपत्ति के आधार पर अंतर बढ़ा, जिससे एक शक्तिशाली शासक वर्ग की जरूरत पैदा हुई।
- महत्वपूर्ण महाजनपद: हमे 16 महाजनपदों का उल्लेख बौद्ध और जैन ग्रंथों में मिलता है। इनमें से कुछ प्रमुख थे:
- मगध (बिहार) – उस समय का सबसे शक्तिशाली महाजनपद बना।
- कोशल (उत्तर प्रदेश)
- वत्स (उत्तर प्रदेश)
- अवंती (मध्य प्रदेश)
- प्रशासन के दो मॉडल: इन जनपदों मे मुख्यतः दो तरह की शासन प्रणाली का इस्तेमाल होता था –
- राजतंत्र (Monarchy): जहाँ शासन एक व्यक्ति (राजा) के हाथ में होता था। जैसे – मगध।
- गणतंत्र या संघ (Republics or Ganasanghas): जहाँ शासन की शक्ति कई व्यक्तियों (जनजातीय मुखिया) के एक समूह के पास होती थी। जैसे – शाक्य, मल्ल।

2. मगध का उदय: प्रमुख साम्राज्य
इन सभी महाजनपदों मे से मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन पाया। क्यूंकि इसके उदय के कई कारण थे:
- कच्चे संसाधन: मगध के क्षेत्र में लोहे की खानें थीं जो हथियार बनाने के काम आती थीं।
- उपजाऊ भूमि: ये क्षेत्र मे गंगा और उसकी सहायक नदियां मौजूद थी जिनकी वजह से यहाँ की भूमि उपजाऊ थी और कृषि उत्पादन अधिक था।
- स्थायी सेना: मगध के शासकों ने स्थायी सेना (Standing Army) बनाई, जो उनकी सैन्य शक्ति का आधार बनी।
- प्रशासनिक कुशलता: मगध प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत और संगठित थी।
- राजधानी की स्थिति: सबसे पहले राजगीर राजधानी थी जो की पहाड़ियों से घिरी और सुरक्षित थी, और बाद में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया जो की नदियों के संगम पर स्थित थी ये व्यापार के लिए अनुकूल क्षेत्र था।
- प्रमुख शासक:
- बिंबिसार और अजातशत्रु (हर्यंक वंश)
- महापद्मनंद (नंद वंश) – इसे ‘सर्वक्षत्रान्तक’ (सभी क्षत्रियों का विनाश करने वाला) कहा गया।
- चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार और अशोक (मौर्य वंश)।
3. मौर्य साम्राज्य (लगभग 321 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व)
- संस्थापक: चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस (एक यूनानी शासक) को हराकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी।
- स्रोत: इस काल के बारे में जानकारी के मुख्य स्रोत हैं:
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र (राजनीति और शासन पर ग्रंथ)
- मेगस्थनीज की इंडिका (एक यूनानी राजदूत का विवरण)
- अशोक के शिलालेख (Rock Edicts और Pillar Edicts)
- प्रशासन:
- केंद्रीयकृत प्रशासन (Centralized Administration): इस मे राजा सर्वोच्च शासक होता था।
- मंत्रिपरिषद: राजा को सलाह देने के लिए मंत्रियों की एक परिषद होती थी।
- प्रांत: पूरे साम्राज्य को अलग अलग प्रांतों में बांटा गया था, जिन पर राजकुमार या गवर्नर शासन करते थे।
- राज्यक: ये अधिकारी कर वसूलते थे और कानून-व्यवस्था बनाए रखते थे।
- जासूसी तंत्र (Espionage System): गुप्तचर राज्य के विभिन्न हिस्सों की जानकारी राजा तक पहुँचाते थे।
- अर्थव्यवस्था:
- कर व्यवस्था (Taxation System): सभी प्रशासन प्रणालियों के समान इस राज्य की आय का मुख्य स्रोत भी कर(Tax) थे। किसानों से भाग (उपज का 1/6 हिस्सा) के रूप में कर लिया जाता था।
- सिंचाई: खेतों की सिंचाई के लिए नहरें और कुएं बनवाए गए।
- सड़कें: व्यापार और प्रशासन के लिए सड़कों का जाल बिछाया गया।
4. अशोक का ‘धम्म’ (Dhamma)
- अर्थ: अशोक ने धम्म का सिद्धांत दिया जो की बौद्ध ‘धर्म’ जैसा नहीं था। यह एक नैतिक संहिता (Moral Code) या आचार संहिता थी।
- लक्ष्य: अशोक सम्राट का लक्ष्य एक ऐसा सामाजिक व्यवहार तैयार करना जिससे विशाल और विविधताओं भरे साम्राज्य में सामाजिक एकता बनी रहे।
- धम्म के सिद्धांत: इसमें नैतिक गुणों पर जोर दिया गया, जैसे:
- बड़ों का आदर करना।
- दासों और सेवकों के साथ अच्छा व्यवहार करना।
- सभी धर्मों और संप्रदायों का सम्मान करना।
- अहिंसा और जीव हत्या न करना।
- प्रचार के साधन: अशोक ने अपने धम्म के संदेश को शिलालेखों (रॉक एडिक्ट्स, पिलर एडिक्ट्स) के माध्यम से पूरे साम्राज्य में फैलाया।


5. नगरों का विकास: नए नगरीय केंद्र
मौर्य काल के बाद (लगभग 200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक) उत्तर भारत में नए प्रकार के नगरों का विकास हुआ।
- प्रमुख नगर:
- पाटलिपुत्र (पटना)
- तक्षशिला (व्यापार और शिक्षा का केंद्र)
- मथुरा (कपास और व्यापार का प्रमुख केंद्र)
- पुष्कलावती, श्रावस्ती, वैशाली आदि।
- नगरों के कार्य:
- ये प्रशासनिक केंद्रों के रूप मे काम आते थे।
- व्यापारिक केंद्र (Trading Centres): ये नगर व्यापार मार्गों के जंक्शन पर स्थित थे।
- धार्मिक केंद्र: मथुरा जैसे नगर तीर्थस्थल भी थे।
- शिल्प उत्पादन के केंद्र (Centres of Craft Production): यहाँ विभिन्न प्रकार के शिल्पकार (लोहार, बढ़ई, बुनकर, मूर्तिकार) रहते थे।
6. किसान, भूमिदान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- ग्रामीण जीवन: साम्राज्य की अधिकतर जनता गाँवों में रहती थी और कृषि पर निर्भर थी।
- ग्राम के प्रमुख:
- ग्राम प्रधान (Village Headman): गाँव का मुखिया, जो कर वसूलने और विवाद सुलझाने में मदद करता था।
- बड़े किसान (Large Landowners): जिनके पास जमीन और संसाधन ज्यादा मात्रा मे होते थे।
- भूमिदान (Land Grants): मौर्योत्तर काल में एक नई प्रथा शुरू हुई।
- अर्थ: इस प्रथा मे राजा द्वारा ब्राह्मणों या धार्मिक संस्थानों को कर मुक्त भूमि दान में दी जाती थी।
- प्रभाव: इस प्रथा से राज्य पर कई प्रभाव पड़े:
- भूमि दान मे देने के कारण राज्य को कर का नुकसान हुआ।
- ब्राह्मणों और मंदिरों की आर्थिक शक्ति बढ़ी।
- सामंतवाद (Feudalism) की शुरुआत के बीज पड़े, क्योंकि दान पाने वाले लोग छोटे राजाओं की तरह व्यवहार करने लगे।
- साधारण किसानों और भूदासों (Slaves or Landless Labourers) पर शोषण बढ़ा, क्योंकि वे अब इन नए जमींदारों पर निर्भर हो गए।
7. व्यापार और वाणिज्य (Trade and Commerce)
- आंतरिक व्यापार (Internal Trade): राज्य के अंदर नदियों और सड़कों के माध्यम से व्यापार होता था। नमक, अनाज, कपास, धातुएँ आदि का व्यापार होता था।
- विदेशी व्यापार (Foreign Trade):
- रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार बहुत महत्वपूर्ण था। भारत से मसाले, कपड़ा, हाथीदाँत, रत्न आदि निर्यात होते थे।
- रोम से सोना (Roman Gold): भारत के माल के बदले रोम से बड़ी मात्रा में सोना आता था, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
- व्यापार मार्ग (Trade Routes):
- उत्तरापथ: उत्तर भारत का भूमि मार्ग।
- दक्षिणापथ: दक्षिण भारत का भूमि मार्ग।
- समुद्री मार्ग (Maritime Routes): पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी के रास्ते व्यापार होता था।
- सिक्के (Coins): सिक्कों का चलन व्यापार की एक बड़ी उपलब्धि थी:
- आहत सिक्के (Punch-marked Coins): मौर्य काल में चलने वाले प्रमुख सिक्के, जिन पर चिह्न बने होते थे।
- सोने के सिक्के (Kushana Gold Coins): कुषाण शासकों ने सोने के सुंदर सिक्के चलाए।
- सिक्कों के प्रचलन से व्यापार आसान और तेज हुआ।